सभी मावभक्ताें काे"" जय महाराज "" मावजी महाराज के शेषपुर गांव में आगमन की कथा काे मैने शब्दाें में लेखबद्ध करने का एक सफल प्रयास किया है ।सभी माव भक्ताें से निवेदन है कि इस पुर्ण कथा काे पढें आप आनन्द विभाेर हाे जायेंगे । जय मावजी महाराज. अदभुत,आलाैकिक, अवतारी पुरुष मावजी महाराज ने शेषपुर गांव में इटावल ब्राह्मण समाज के खासाैर परिवार के पुर्वज पुजनीय जाैराजीं (खाैर-राणा) काे एवं नासियाेत परिवार के पुर्वज पुजनीय,आदरणीय नाहर जी (ठाकाेर) काे एक साथ स्वप्न में दर्शन देकर शेषपुर आने की इच्छा जताई। जाैराजीं एवं नाहर जी दाेनाे गांव के सम्मानीय व्यक्ति हाेने के साथ घनिष्ठ मित्र भी थे। जब प्रात:काल दाेनाे ने एक दुसरे काे अपने रात्री स्वप्न के बारे में अवगत कराया ताे दाेनाे काे विश्वास नही हुआ कि दाेनाे काे एक ही समय में एक ही स्वप्न अवतारी पुरुष मावजी महाराज द्वारा दिखाया गया ।इस आलाैकिक स्वप्न काे प्रभु मावजी महाराज का आदेश मानकर जाैराजीं एवं नाहर जी तथा बाटा परिवार से दाे मावभक्ताे काे साथ लेकर प्रभु मावजी महाराज काे शेषपुर लाने हेतु रवाना हुए। जब माही नदी के आस-पास पंहुचे ताे थकान के कारण कुछ देर विश्राम करने का मन बनाया । विश्राम करते हुए नाहर जी के मन में विचार आया । आैर जाैराजीं से बाेले कि "हम मावजी महाराज के पास जायेंगे ताे उन्हें भेट स्वरुप क्या देंगे क्याेंकि हम ताे कुछ भी लेकर नही आये है । " इस पर जाैराजीं ने कहा कि " हम एेसा करते है कि यहां माही नदी से कुछ गाेल पत्थर जाे नारियल की तरह दिखते है, आैर कुछ रेत ले लेते है आैर उसे ताेलिये में बान्ध लेते है। आैर मावजी महाराज के पास जायेंगे ताे उस गठरी काे पास में रख लेंगें जिससे उनकाे लगेगा कि हम कुछ भेंट लेकर आये है । लेकिन देना भुल गये है । " एेसी याेजना बनाकर वहां से रवाना हाेकर सभी बेणेश्वर धाम पर पंहुचे ।मावजी महाराज के दर्शन कर प्रभु मावजी महाराज काे शेषपुर आने का आमन्त्रण दिया। फिर बाताें ही बाताें में मावजी महाराज ने नाहर जी से पुछ लिया कि " मारा वाला पाेटली में क्या लेकर आये हाे ?"ताे नाहर जी ने कहा कि "प्रभु बस नारियल आैर चावल है।भेंटस्वरुप लाये है" । इस पर मावजी महाराज ने उन्हें भेट काे खाेलने के लिए कहा ।पहले ताे उन्हाने मना कर दिया पर प्रभु मावजी महाराज के बार-बार आग्रह पर उन्हाने उस गठरी काे खाेला ताे उनके आश्चर्य का पार नही रहा ।जब गठरी के पत्थर नारियल आैर रेत चावल बन चुके थे। ऐसे आलाैकिक अवतारी पुरुष मावजी महाराज के इस चमत्कार काे देखकर नाहर जी ठाकाेर, जाैराजीं आैर दाेनाें बाटा सभी मावभक्त उनके चरणाें में गिर पडे़ । फिर मावजी महाराज काे पालकी में बिठाकर चाराें शेषपुर आने के लिए बेणेश्वर धाम से रवाना हुए । पैदल यात्रा करते हुए शेषपुर गांव के नजदीक पंहुचे ताे गांव में प्रवेश के दाैरान वर्तमान में शेषपुर गांव में खारी क्षेत्र में बाटा परिवार का बाहुल्य था । जिन्हाेंने मावजी महाराज के गांव नें प्रवेश का विराेध किया था ।इसपर नाहर जी तथा जाैराजीं ने काफी समझाईश की लेकिन वाे नही मानें ।इस बात से ऩाराज हाेकर मावजी महाराज ने नाहर जी से पुछा कि " हमारे साथ कितने बाटा है ।" इस पर नाहर जी ने जवाब दिया कि बाटा परिवार के दाे लाेग हमारे साथ है।" इस पर मावजी महाराज ने लाेकभाषा में श्राप दिया कि " बे बाटा ने बाकी सब भाटा " । तत्कालीन समय के पश्चात बाटा समुदाय की वंशवृद्धी पर मावजी महाराज के श्राप का प्रभाव रहा । (वर्तमान समय में ऐसी किवदन्ती है कि बाद में गादीपति गुरुदेव देवानन्द जी महाराज के आशीर्वाद से मावजी महाराज के उस श्राप से बाटा समुदाय मुक्त हुआ । आैर उनकी असीम कृपा से उत्तराेत्तर वंशवृद्धी हुई थी ।) बाद में मावजी महाराज का शेषपुर गांव में बहुत आदर- सत्कार हुआ । ऩाहर जी जाैराजीं आैर समस्त ईटावाल ब्राह्मण समाज के भक्ती -भाव से प्रसन्न हाेकर मावजी महाराज ने सभी इटावाल ब्राह्मणाें काे कहा कि सब अपने-अपने घर पर दस हाथ का कुंआ खाेदाे । मै मावजी आशीर्वाद देता हूँ कि चाहे कितना भी अकाल पडेगा इन कुंआें में पानी कभी खत्म नही हाेगा । तब ईटावाल ब्राह्मण समाज के भक्ताें ने मावजी महाराज से कहा कि प्रभु आपके आशीर्वाद से शेषपुर में खुब पानी है हम कुआ खुदवा कर क्या करेंगे । तब मावजी महाराज ने कहा कि " वाह रे इटीवाल ब्राह्मणाें मही सागर के पत्थर भीगे कि इटीवाल ब्राह्मण भीगे। " अर्थात् ईटावाल ब्राह्मण इतने इमानदार थे कि बिना मेहनत मुफ्त में कुछ भी लेना नहीं चाहते थे। तब मावजी महाराज ने कहा कि ""जाआें ना कभी तुम भुखे रहाेगे ।ना ही कभी भरपेट भाेजन कर पाआेगे।"" अर्थात् ईटावाल ब्राह्मणाें की आर्थिक स्थिति हमेशा समयानुसार सामान्य ही रहेगी । ना अधिक धनार्जन व अकूत सम्पत्ति हाेगी ना ही दरिद्र हाेंगे ।"" जाे आज भी इटीवाल ब्राह्मण समाज पर अक्षरश: चरितार्थ हाेती है । ऩिस्संदेह आज भी इटीवाल ब्राह्मण समाज के लाेेग मेहनत करके इमानदारी से अपना जीवनयापन करते है । """" तत्पश्चात मावजी महाराज धाैलागढ धाम पर एकान्तवास में चले गये । वहां पर अपनें शिष्याे की सहायता से चाैपडाें का लेखन किया अन्त में शेषपुर धाम पर उनका अन्तिम संस्कार हुआ । वही से स्वयंभू मूर्ति श्री निष्कलंक दशावतार की चीता की राख से निकली जाे मंदिर बनाकर वहां स्थापित की गई।तत्कालीन समय से निरन्तर शेषपुर की तपाेभूमि पर आगामी कल्कि अवतार की नित्य-प्रति पूजा़ अर्चना हाेती है ।मावजी महाराज की असीम कृपा से इटीवाल ब्राह्मण समाज के दिवंगत दिव्य पुरुष रतनलाल जी खासाैर द्वारा मावजी महाराज के चाैपडाें का वाचन करने की दिव्य दृष्टि प्राप्त थी ।उनके देवलाेक गमन के पश्चात वर्तमान में उनके ज्येष्ठ पुत्र श्रीमान् शंकरलाल जी खासाैर द्वारा साम सागर नामक चाैपडे का वाचन कर माववाणी काे जन-जन तक पंहुचाने का सार्थक कार्य किया जा रहा है । आलाैकिक अवतारी पुरुष मावजी महाराज के समाधीस्थल शेषपुर धाम पर जहां निष्कलंक दशावतार का मन्दिर स्थित है ।वहां मन्दिर के दाहीनी तरफ पुजनीय जाैराजीं की एंव बांयी तरफ पुजनीय नाहर जी का समाधीस्थल बना हुआ है । जाे आज भी जनमानस के लिए प्रेरणा स्त्राैत है । आलाैकिक अवतारी पुरुष मावजी महाराज के शेषपुरआगमन का मेरा यह लेख दन्तकथाआें पर आधारित है इस लेख में मुझसे काेई त्रुटि रह गई हाे ताे क्षमा प्रार्थी हूँ ।
पंकज सरवार शेषपुर
Mo. 09660674957